विभूति योग - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 10: विभूति योग

हटायें

  • श्लोक
  • संधि विच्छेद
  • व्याख्या

हटायें

छिपायें

अ 10 : श 01

श्रीभगवानुवाच
भूय एव महाबाहो श्रृणु मे परमं वचः ।
यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया ॥

संधि विच्छेद

श्रीभगवानुवाच
भूय एव महाबाहो श्रृणु मे परमं वचः ।
यत् ते अहम् प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया ॥

अनुवाद
श्री भगवान बोले: हे महाबाहो (विशाल भुजाओं वाले, अर्थात अर्जुन)! क्योंकि तुम मेरे प्रिय हो इसलिए तुम्हारे कल्याण(हित’) के लिए मैं ये परम रहस्य बताता हूँ| इसे ध्यानपूर्वक सुनो(ह्रदय में धारण करो)|
व्याख्या

अर्जुन की भक्ति से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने अगले ८ श्लोकों में अर्जुन को श्रृष्टि निर्माण और अपने दिव्य शक्तियों का रहस्य बताया और अर्जुन को यह सलाह दी कि वह इसे ध्यानपूर्वक सुने और ह्रदय से धारण करे| इससे उसका पूर्ण कल्याण होगा