श्री भगवानुवाच
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् ।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् ॥
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः ।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ॥
श्री भगवानुवाच
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवान् अहम् अव्ययम् ।
विवस्वान् मनवे प्राह मनुः इक्ष्वाकवे अब्रवीत् ॥
एवं परम्परा प्राप्तम् इमं राजर्षयः विदुः ।
सः कालेन इह महता योगः नष्टः परन्तप ॥
इन दो श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने योग की उत्पत्ति और उसके विस्तार का रहस्य बताया है| यह दो शलोक योग की उत्पत्ति के सबसे महत्वपूर्ण प्रमाण हैं| भगवान ने स्पस्ट रूप से बताया कि स्वयं उन्होंने योग के इस रहस्य को सबसे पहले आदि देव सूर्य को बताया था| सूर्य ने यह विद्या अपने पुत्र मनु को बताया|मनु ने अपने पुत्र एवं भगवान राम के पूर्वज राजा इश्वाकू को बताया| कालांतर में यह विद्या महान राजाओं द्वारा आश्रित ऋषिओं द्वारा एक से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित होती रही| लेकिन फिर बीच में जब धर्म का शासन मंद पड़ गया तो योग की यह विद्या कुछ समय के लिए पृथ्वी से लुप्त रही|
इसी योग को भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद भगवद गीता में फिर से प्रकट किया |