अर्जुन उवाच
सन्न्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि ।
यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ॥
अर्जुन उवाच सन्न्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि ।
यत् श्रेयः एतयोः एकम् तत् मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ॥
पिछले तीन अध्यायों में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को अध्यात्म के कई रहस्य बताये जिनमे आत्मा और पुनर्जन्म का रहस्य, कर्मयोग, सन्यास, यज्ञ, ज्ञान, आत्म संयम आदि| उनमे से दो सिधान्तों सन्यास और कर्म योग के ऊपर अर्जुन के मन में संशय उत्पन्न हो गया| साधारणतया सन्यास का अर्थ होता है कर्मों का त्याग और कर्म योग कर अर्थ होता है कर्म करना| अर्जुन को यह समझ नहीं आया कि दोनों कैसे सत्य हैं और सत्य हैं तो उनमे से कौन उत्तम है| अर्जुन ने इस शंका की समाधान के लिए भगवान से प्रश्न किया और मार्ग दर्शन देने आग्रह किया |