तत्व(सत्य) को जानने वाला योगी यद्यपि देखता है, सुनता है, स्पर्श करता है, सूँघता है, भोजन करता है, गमन करता है, सोता है, स्वास लेता है लेकिन वह जानता है कि वह स्वयं कुछ नहीं कर रहा | बल्कि बोलते हुए, त्यागते हुए, ग्रहण करते हुए, आँख खोलते और बंद करते हुए उसे यह ज्ञात होता है कि प्राकृतिक नियमों के अधीन अंग वस्तुओं के साथ संलग्न हैं(कार्यों का होना एक प्राकृतिक क्रिया है) | इसलिए वह उनमे लिप्त नहीं होता |