अक्षर ब्रम्ह योग - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 8: अक्षर ब्रम्ह योग

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अ 08 : श 01-02

अर्जुन उवाच
किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं पुरुषोत्तम ।
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते ॥
अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन ।
प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः ॥

संधि विच्छेद

अर्जुन उवाच
किं तद् ब्रह्म किम् अध्यात्मं किं पुरुषोत्तम ।
अधिभूतं च किं प्रोक्तम् अधिदैवं किम् उच्यते ॥
अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहे अस्मिन मधुसूदन ।
प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयः असि नियत आत्मभिः ॥

अनुवाद
अर्जुन ने कहा हे पुरुषोत्तम! [कृपा करके] यह बताएं कि यह ब्रह्म क्या है? अध्यात्म क्या है? कर्म क्या है? अधिभूत क्या है और अधिदैव किसको कहते हैं? हे मधुसूदन! इस प्रकार यह अधियज्ञ कौन हैं और इस शरीर में कैसे हैं? और किस प्रकार एक दृढ आत्मयुक्त (ईश्वर भक्त) अन्तकाल में आपको जान सकता हैं?
व्याख्या

पिछले अध्याय के अंतिम श्लोक में अपनी दैवीय गुणों का वर्णन करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने कुछ गुढ़ शब्दों जैसे अधिभूत,अधिदैव और अधियज्ञ का उल्लेख किया | अर्जुन को उन शब्दों का अर्थ समझ नहीं आया, इसलिए अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण से उनका अर्थ स्पस्ट करने का आग्रह किया| उसके साथ ही अर्जुन ने कई और दूसरे प्रश्न भी पूछे|
ऊपर के दो श्लोक में एक के बाद एक अर्जुन ने सात प्रश्न पूछे| वे साथ प्रश्न इस प्रकार हैं
१. ब्रह्म क्या है?
२. अध्यात्म क्या है?
३. कर्म क्या है?
४. अधिभूत क्या है?
५. अधिदैव क्या है?
६. अधियज्ञ क्या है?
७. किस प्रकार अधियज्ञ जीवित शरीर में स्थित होता है?

ऊपर पूछे गए सातों प्रश्न सनातन धर्म की सबसे मूल सिद्धांतों के बारे में है | दूसरे सनातन ग्रन्थ अलग अलग स्थानों पर इन सिद्धांतों की व्याख्या तो करते हैं लेकिन कोई भी दूसरा ग्रन्थ एक ही स्थान पर इन सभी सिद्धांतों की व्याख्या एक साथ एक ही स्थान पर नहीं करता | यह ऐसे सिद्धांत ऐसे है जिन्हे समझने के बाद सनातन धर्म के दूसरे सिद्धांतों को समझना आसान हो जाता है | अगले श्लोकों में भगवान श्री कृष्ण ने इन सभी प्रश्नो का उत्तर दिया है |