जो [मनुष्य] उस परमात्मा, जो सर्वज्ञ, अनादि(पुरातन), सबका नियंता(ब्रम्हांड के सभी नियमों को निर्धरित करने वाला),अणुओं से भी सूक्ष्म, सबका पोषक, कल्पनातीत भव्य स्वरूप वाला, अविद्या से परे सूर्य के समान तेज वाला है, का निरंतर ध्यान(स्मरण) करता है, वह भक्ति के योगबल (योग की शक्ति) से युक्त मृत्यु के [कठिन] समय में भी ईश्वर में मन स्थिर करके नेत्रों के बीच (आज्ञा चक्र) पर ध्यान केंद्रित करते हुए दिव्य परमात्मा को प्राप्त करता है|