भौतिक शरीर के अवयव - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

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भौतिक शरीर के अवयव

"ओम् नमो भगवते वसुदेवायः"

यह शरीर प्रकृति से बना है इस तथ्य कों पहले के विवेचन में कई बार बताया जा चूका है | लेकिन शरीर प्रकृति से किस प्रकार निर्मित है, इसको जानने लिए हमे इसके सभी अवयवों कों जानना जरूरी हैं | हम भाग्यशाली हैं कि भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं के श्री मुख से शरीर के इस पुरे रहस्यों कों प्रदर्शित किया | यह विवेचन इस तथ्य के बारे में ही है |

कृपया निम्न श्लोक पर गौर करें :
Ch13:Sh 6,7
महाभूतान्यहङ्का्रो बुद्धिरव्यक्तमेव च ।
इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचराः ॥
इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं सङ्घाोतश्चेतना धृतिः ।
एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम्‌ ॥

पाँच महाभूत, अहंकार, बुद्धि और मूल प्रकृति भी तथा दस इन्द्रियाँ, एक मन और पाँच इन्द्रियों के विषय अर्थात शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध तथा इच्छा, द्वेष, सुख, दुःख, स्थूल देहका पिण्ड, चेतना (शरीर और अन्तःकरण की एक प्रकार की चेतन-शक्ति।) और धृति -- इस प्रकार विकारों के सहित यह क्षेत्र संक्षेप में कहा गया॥6॥

यह श्लोक शरीर के सभी अवयवों का का उल्लेख करता है, मैं ऊपर के श्लोक का सारांश यहाँ प्रस्तुत करता हूँ | शरीर के निन्म अवयव होते हैं :

१. पांच महाभूत
२, दो अव्यक्त अवयव(बुद्धि, अहंकार)
३. दस इन्द्रियां
४. पांच इन्द्रीय गोचर(इन्द्रियों के अनुभव होने वाले)
५. मस्तिस्क
६. आंतरिक ज्ञान

अगर हम सबको जोड़ दें
पांच महाभूत + दो अव्यक्त अवयव + दस इन्द्रियां + पांच इन्द्रीय गोचर + मस्तिस्क + आंतरिक ज्ञान = २४
इस प्रकार २४ अवयव हैं जिससे यह भौतिक शरीर बनता है | इन अवयवों के विभिन्न बदलाव से सभी भौतिक कार्य संपन्न होते हैं और शरीर के गुण निर्धारित होते हैं | इसको और समझाने के लिए इनको थोडा और विस्तार से अध्ययन करते हैं

1. पांच महाभूत:
इस प्राथमिक अवयव हैं जिनसे इस ब्रम्हांड के सभी जीवित या अजीवित पदार्थों का निर्माण हुआ है |
1. पृथ्वी:
2. जल या द्रव:
3. अग्नि:
4. वायु
5. आकाश

2. अव्यक्त अवयव :
इन पांच महाभूत तत्वों के अलावा २ ऐसे तत्व होते हैं जो अव्यक्त होते हैं | ये दो अव्यक्त तत्व सिर्फ जीवित शरीर में ही पाए जाते है निर्जीव में नहीं|
1. अहंकार
2. बुद्धि

3. इन्द्रियां
मानव शरीर में १० इन्द्रियां होती है | ये इन्द्रियां दो प्रकार कि होती हैं

3.1 ज्ञान इन्द्रियां:
यह इन्द्रियां शरीर कों शरीर के बहार के वातावरण के सभी बदलावों का ज्ञान शरीर कों देती हैं, यह इन्द्रियां हैं
1. आंख
2. कान,
3. नाक,
4.जीभ(जिव्हा) और
5.त्वचा

इन पांच ज्ञान इन्द्रियों के अलावा ५ ऐसी इन्द्रियां होती हैं जिससे शरीर सभी जरूरी कार्य करता है , यह इन्द्रियां हैं

3.2 कार्य इन्द्रियां
1. कंठ,
2. हाथ,
3. पैर,
4. जनेन्द्रिय और
5.गुदा

4. इन्द्रिय गोचर
इन्द्रिय गोचर वह अवयव हैं जिसे ज्ञान इन्द्रियां ग्रहण करती हैं: हर एक ज्ञान इन्द्रिय के साथ एक अवयव जुड़ा होता है, यह अवयव हैं

1. दृश्य,
2. आवाज,
3. गंध,
4. स्वाद
5. स्पर्श

5: मस्तिस्क

मस्तिस्क शरीर का एक अति महत्वपूर्ण अंग हैं | मैंने पाया है कि सबसे ज्यादा भ्रम मस्तिस्क कों लेकर ही है | अज्ञानवश कई लोग इसे प्रकृति से अलग समझते हैं, कई लोग मस्तिस्क कों आत्मा से जोडने का प्रयास करते हैं | मस्तिस्क शरीर और इस प्रकार प्रकृति का अंग हैं |

6: आतंरिक ज्ञान:
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शरीर का यह बहुत ही महत्वपूर्ण अवयव है| शरीर के आतंरिक ज्ञान शरीर के सभी वाह्य क्रियायों कों निर्धारित करते हैं| आतंरिक ज्ञान निन्म प्रकार के होते है

1. इक्षा,
2. द्वेष(घृणा),
3. सुख,
4. दुःख,
5.चेतना,
6. सहज ज्ञान(,The intuition)
7. धैर्य

इस प्रकार २४ अवयवों से यह शरीर बना होता है | बुद्धि जो मस्तिस्क की संज्ञानात्मक अवस्था है धैर्य और साहस जैसे अवयवों के साथ व्याप्त होता है | इक्षा, धृणा आदि मस्तिस्क के विभिन्न संज्ञान की अवश्थाएं हैं और मस्तिस्क के भाग हैं आत्मा के नहीं | इसी प्रकार दूसरे अंतर्ज्ञान भी मस्तिस्क जनित हैं न कि आत्मा जनित |

इन २४ अवयवों के अलावा शरीर की कई अवस्थाएं हैंशरीर अपने आरंभ से अंत तक कई अवस्थाओं से गुजरता है | इन्हें शरीर के विकार के रूप में जाना जाता है | शरीर के अवयवों के साथ दिए श्लोक में शरीर के विकारों का भी वर्णन है

Ch13:7(अंतिम पंक्ति )
एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम्‌ ॥
भावार्थ : ....... इस प्रकार विकारों के सहित यह क्षेत्र संक्षेप में कहा गया॥6॥

शरीर ६ अवस्थाओं से गुजरता है जो निम्न प्रकार हैं

शरीर के ६ विकार(Alterations)
1. जन्म,
2. संपोषण,
3. विकास,
4. प्रौढता,
5. उतार(पतन) और
6. मृत्यु
इस प्रकार शरीर इन अवस्थाओं के बीच गुजरता है | यह प्रक्रति से शुरू होकर प्रकृति के तत्वों में ही विलीन हो जाता है |

ब्रिहदारान्याका उपनिषद १.५.३ में यह वर्णित है कि इक्षा, आभाष, शंका, विश्वास, अविश्वास, धैर्य, अधैर्य, विनम्रता, बुद्धि एवम भय यह सब मस्तिस्क से उत्पन्न होते हैं, आत्मा से नहीं | चूँकि मस्तिस्क प्रर्कृति का ही एक भाग है अतः यह सब प्रकृति के ही अंश हैं |

इस प्रकार इस विवेचन में शरीर के अवयवों का वर्णन हुआ | हमे यह समझना चाहिए की कई अवयव जैसे बुद्धि, मस्तिस्क, इक्षा, द्वेष, सुख एवं दुःख आदि भी प्रकृति के ही गुण हैं, आत्मा के नहीं | ये सभी गुण प्रकृति से जुड़े होते हैं और प्रकृति के परिवर्तन से परवर्तित होते हैं |

शरीर का पूर्ण ज्ञान अध्यात्म कों जानने का सबसे पहला कदम है| शरीर के अवयवों कों जानने से आत्मा के साथ इसकी भिन्नता जानने में सुविधा होगी | मुझे उम्मीद है आपको इस विवेचन से शरीर के अवयवों कों जानने में सहायता मिलेगी|

“श्री हरि ओम् तत् सत्”