राज विद्या राज गुह्य योग - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

अध्याय 9: राज विद्या राज गुह्य योग

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अ 09 : श 01-02

श्रीभगवानुवाच
इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे ।
ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्‌ ॥
राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम्‌ ।
प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम्‌ ॥

संधि विच्छेद

श्रीभगवानुवाच
इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्यामि अनसूयवे ।
ज्ञानं विज्ञान सहितं यत् ज्ञात्वा मोक्ष्यसे अशुभात्‌ ॥
राजविद्या राजगुह्यं पवित्रम् इदं उत्तमम्‌ ।
प्रत्यक्ष अवगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुम् अव्ययम्‌ ॥

अनुवाद
श्री भगवान बोले-[हे अर्जुन!] क्योंकि तुम मेरे प्रति शंका रहित हो(मुझपर विश्वास रखते हो), [इसलिए] मै तुम्हे वह गुढ़ विज्ञान बताता हूँ, जिसे आत्मसात करके (जानकर) तुम [इस संसार के] सभी क्लेशों(दुखों) से मुक्त हो जाओगे||1|| यह राज विद्या(उच्च कोटि की विद्या या ज्ञान) है, अति गोपनीय, पवित्र करने वाला और उत्तम ज्ञान है | यह वास्तविक अनुभव से प्राप्त होने वाला, सरल और धर्म के अनुकूल है||2||