बहुत सारे भगवान | वास्तविकता क्या है ? - श्रीमद भगवद गीता

श्रीमद भगवद गीता

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बहुत सारे भगवान | वास्तविकता क्या है ?

ओम् नमो भगवते वसुदेवायः

कितने सारे भगवान ? यह वाक्य हो सकता है आप में से कुछ लोगों ने सुनी हो कहीं या कुछ लोगों ने न भी सुनी हो, लेकिन दूसरे, खासकर पक्षिम के धर्मो के मानने वाले कई लोग ऐसा समझते हैं की हिन्दू कई भगवानो या ईश्वरों की पुंजा करते हैं | इस आधार पर कुछ लोग हिन्दू धर्म को बहु ईश्वरवादी धर्म मानते हैं |

दरअसल इस प्रकार की धारणा होने के पीछे कई कारण हैं, पहला कारण तो यह की पक्षिम के धर्मो के सिद्धांत एक ईश्वर और उसकी आज्ञा से इर्द गिर्द घूमती है और जब वह दूसरे धर्मो का निर्धारण करते हैं तो उस परिवेक्ष्य में निष्कर्ष निकालते हैं | वास्तव में हिन्दू या यूँ कहें पूर्व के सभी धर्म जैसे सिख, बुध, जैन आदि पक्षिम के धर्मो से एकदम भिन्न हैं, सिद्धांत और प्रचलन दोनों में | हिन्दू धर्म के ईश्वर के अकेली इकाई नहीं | ईश्वर से प्रारम्भ होकर मनुष्य और निम्न जीवों तक लाखों करोड़ों प्रकार हैं | इस ब्रम्हांड में जीवन, जीव ही नहीं बल्कि निर्जीव पदार्थ भी स्तरीय (hierarchical) रूप विद्यमान हैं |

दूसरी वजह है हिन्दू धर्म ग्रंथो के विदेश भाषाओ के उचित अनुवाद न होना | उदहारण के तौर पर हिन्दू धर्म देवता एक अलग इकाई हैं| यह ईश्वर नहीं परन्तु मनुष्यों से श्रेष्ठ हैं और देवलोक में वास करते हैं | हिन्दू धर्म के सभी ग्रंथों में देवता और ईश्वर दो अलग अलग इकाई हैं | लेकिन जब हिन्दू ग्रंथों का अंग्रेजी या दूसरी पक्षिम की भाषाओँ में अनुवाद होता है तो देवता का कोई भी प्रयाय शब्द नहीं है उन भाषाओ में | अंग्रेजी में देवता के लिए कुछ लोग God और कुछ दूसरे Demigod जैसे शब्दों में अनुवाद करते हैं | इस प्रकार वह हर हाल में वह निष्कर्ष यही निकलते हैं की हिन्दू धर्म में कई ईश्वर हैं |

वास्तविकता क्या है ?

देवता मनुष्य से ज्यादा उन्नत प्राणी हैं | इस ब्रम्हांड का निर्माण करते समय श्री ब्रम्हा ने १४ लोकों में जीवन की स्थापना की और विभिन्न प्रकार के प्राणियों के निर्माण किया | देवता उन प्राणियों में सबसे उत्तम हैं | देवताओं के अलावा भी कई और उन्नत प्राणी उपरी लोकों में हैं जैसे यक्ष, गन्धर्व इत्यादि | प्राणियों की यह विविधता इस पृथ्वी पर भी स्पस्ट देखा जा सकती है | लाखों प्रकार के जीव इस पृथ्वी पर निवास करते हैं जो शक्ति, बुद्धि और संवेदनशीलता में एक दूसरे से भिन्न
हैं | कोई जीव अधिक बलशाली, कोई कम | कोई अधिक बुद्धिमान कोई काम इत्यादि | पृथ्वी पर मनुष्य सभी दूसरे प्राणियों से श्रेष्ठ है |

लेकिन मनुष्य से उत्तम कई प्राणी है, इस श्रृंखला में देवता ईश्वर के बाद सबसे ऊपर हैं | सृष्टि निर्माण के समय ब्रम्हा ने विभिन्न स्तर के जीवों का निर्माण किया और सबके लिए उचित लोक, उचित वातावरण और उचित गुण प्रदान किये | उसके अधीन सभी जीव अपने अपने गुणों के जीवन व्यतीत करते हैं |
जीवों के निर्माण के साथ कई जीवों का एक दूसर के प्रति सम्बन्ध और एक दूसरे के ऊपर निर्भरता भी निश्चित की |
मनुष्यों और देवताओं के बीच में भी ऐसा ही सम्बन्ध और मनुष्यों का देवताओं के निर्भरता भी सृष्टि के आरम्भ में परमपिता ब्रम्हा द्वारा निश्चित किया गया |

श्रीमद भगवत गीता में परमात्मा श्री कृष्ण ने देवताओ के सृजन एवं मनुष्यों के साथ उनके सामंजस्य का स्पस्ट वर्णन किया है |

कृपया निम्न श्लोकों कों देखे :

Ch3:Sh10
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्टा पुरोवाचप्रजापतिः ।
अनेन प्रसविष्यध्वमेष वोऽस्त्विष्टकामधुक्‌ ॥

प्रजापति ब्रह्मा ने कल्प के आदि में यज्ञ द्वारा सभी जीवों को रचकर उनसे कहा कि तुम लोग इस यज्ञ द्वारा वृद्धि को प्राप्त हो ओ और यह यज्ञ तुम लोगों को इच्छित भोग प्रदान करने वाला हो॥

Ch3:Sh11
देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः ।
परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ ॥

तुम लोग इस यज्ञ द्वारा देवताओं को प्रसन्न करो और वे देवता तुम लोगों का पालन(देखभाल) करें। इस प्रकार निःस्वार्थ भाव से एक दूसरे में सामंजस्य रखते हुए तुम(देवता और मनुष्य) परम कल्याण को प्राप्त होओ॥

ऊपर के दो श्लोकों में श्लोकों से हम निम्न तथ्यों का वर्णन है :
१. श्री ब्रम्हा ने देवता समेत विभिन्न प्राणियों का सृजन ब्रम्हांड के निर्माण के समय किया
२. मनुष्य देवताओं का पूजन करते हैं और देवता मनुष्य एवं दूसरे जीवों के पालन करते हैं |

इन श्लोकों को पढ़ने से सभी तथ्य स्पस्ट हो जाते हैं | देवता मनुष्यों की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं और मनुष्य देवतों का पूजन कर उन्हें प्रसन्न करते हैं | इस सामंजस्य के अनुसार प्रकार से मनुष्य एवं देवता इस विधान का पालन करते हुए एक दूसरे को उन्नत करते हैं | विश्व के सुचारु रूप से संचालन के लिए इस प्रकार से देवताओं एवं मनुष्यों का धर्म निर्धारित किया गया है|

इसको थोडा और स्पष्टता के साथ समझने के लिए एक्स उदहारण लेते हैं | हम देखतें हैं कि सभी बड़े देशों में प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है | प्रधान मंत्री या राष्ट्रपति के साथ या उसके अधीन कई अन्य मंत्री होते हैं | देश की केन्द्रीय सत्ता फिर छोटे छोटे राज्यों में विभाजित होती है | हर एक राज्य का फिर अपना मुख्य मंत्री या राज्यपाल होता है जो उस राज्य का प्रमुख होता है | इतना ही नहीं राज्य पुनः जिलों या काउंटी में विभाजित होते हैं और हर एक जिले का एक प्रमुख होता है | इस प्रकार सत्ता का पूरा कार्य व्यवस्थित होता है |

मान लें किसी कों आय कर जमा करना है तो वह नजदीक के किसी आयकर ऑफिस में जाकर अपना आयकर जमा करता है | इसी प्रकार किसी अन्य कार्य के लिए भी हम किसी स्थानीय सरकारी कार्यालय में ही जाता हैं, प्रधान मंत्री के पास नहीं जाता | बल्कि बड़े से बड़े कार्य भी हम इसी प्रकार की किसी सरकारी कार्यालय में ही संपन्न होते हैं | प्रधान मंत्री अपने मंत्रियों के साथ देश की उच्च नीति निर्धारण का कार्य करता हैं | मंत्री परिषद की सारी नीतियां फिर ऊपर से नीचे सभी सरकारी निकायों द्वारा लागु की जाती हैं |

यह व्यवस्था सिर्फ सरकारी कार्यों ही नहीं बल्कि हर एक प्रकार कि संस्थायों जैसे बैंक, न्याय पद्धति, कंपनियों आदि में लागु होती हैं | बल्कि इस प्रकार की व्यवस्था सबसे उत्तम है और सार्वभौम भी |

ईश्वर का विधान भी ठीक इस प्रकार से कार्य करता है | ईश्वर ने देवताओं कों इस ब्रम्हांड के सारे कार्यों कों सुचारू रूप से चलाने के लिए निर्मित किया है | देवता अपने नीचे अन्य उच्च प्राणियों की सहायता से परमात्मा श्री विष्णु द्वारा निर्धारित दैविक नियमों कों लागु करते हैं | इन्द्र देव इन देवताओं के राजा हैं |

श्री शिव शंकर, श्री ब्रम्हा एवं श्री विष्णु उसी परम ब्रम्ह के तीन रूप हैं जो इस ब्रम्हांड के तीन प्रमुख कार्यों निर्माण, पालन एवं विनाश का निर्धारण करते हैं | इस प्रकार ब्रम्हांड का पूरा कार्य संपन्न होता है |

मनुष्य देवताओं की पूजा करते हैं और देवता मनुष्यों एवं अन्य जीव कों प्रथ्वी पर जीवन से सम्बंधित सभी साधनों कों उपलब्ध कराते हैं | इस प्रकार देवता श्री विष्णु द्वारा निर्धारित नियमों कों लागु करते हैं | मनुष्यों की समृधि देवतों का यथा संभव पूजन करके प्राप्त होता है | देवताओं और मनुष्य के इस सम्बन्ध में बाधा होने से पृथ्वी पर समस्याओं का आगमन होता है | मनुष्यों कों हमेशा देवताओं का पूजन कर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए |


“हरि ओम् तत् सत्”