जिससे इस विश्व को कोई उद्येग (हानि, समस्या या आपत्ति) नहीं, और जिसे इस विश्व से कोई उद्वेग नहीं (शिकायत, समस्या या आपत्ति नहीं), उल्लास, ईर्ष्या, भय और उद्वेग से मुक्त है-वह [भक्त] मुझे प्रिय है।
अथवा
जिससे विश्व के किसी जीव को कोई आपत्ति नहीं और जिसे विश्व की किसी जीव से कोई आपत्ति नहीं, जो सांसरिक भोग विलास, ईर्ष्या, भय और उद्वेग से मुक्त है-वह [भक्त] मुझे प्रिय है।
अथवा
जिससे यह विश्व निरस्त नहीं और जिसके लिए यह विश्व निरस्त नहीं, जो सांसरिक भोग विलास, ईर्ष्या, भय और उद्वेग से मुक्त है-वह [भक्त] मुझे प्रिय है।