हे गोविन्द ! ऐसे राज्य-भोग, सुख और यहाँ तक कि जीवन का भी क्या प्रयोजन(मोल), कि जब वही लोग (सम्बन्धी और मित्र) जो इस राज्य को भोगकर खुश हो सकें आज [सब कुछ छोडकर] युद्ध के लिए खड़े हैं|
गुरुजन, ताऊ-चाचे, लड़के, दादे, मामे, ससुर, पौत्र, साले तथा और संबंधी सुख और जीवन का मोह त्यागकर युद्ध के लिए आतुर हैं| हे मधुसूदन! यद्यपि वे मुझे मारना भी चाहें तब भी मै क्योकर उनका वध करूँ?
इस पृथ्वी की तो बात ही क्या,यदि तीनो लोकों का राज्य भी मुझे मिल जाये तब भी मैं इन्हें मारना नहीं चाहता| हे जनार्दन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या प्रसन्नता होगी?