हे अर्जुन! इन तीनो लोकों में मेरे करने के लिए कुछ भी नही है, लेकिन फिर भी(मनुष्यों का मार्गदर्शन करने के लिए, उनके सामने श्रेष्ठ उदहारण प्रस्तुत करने के लिए) मैं कर्म करता हूँ|
क्योंकि हे पार्थ! यदि कदाचित् मैं सावधान होकर कर्म न करूँ तो सभी मनुष्य (मेरा अनुसरण करते हुए) वैसा ही करना प्रारंभ कर देंगे|
इसलिए यदि मैं कर्म न करूँ तो सभी मनुष्य मुझे मानक मानकर कर्मों का त्याग कर देंगे | सत्य और झूठ का भेद समाप्त हो जायेगा,भ्रम बढ़ जायेगा और इस प्रकार अंततः समाज का नाश हो जायेगा |