जैसे अनेक नदियों के जल सब ओर से परिपूर्ण, अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में उसको विचलित न करते हुए ही समा जाते हैं, वैसे ही सभी कामनाएं स्थितप्रज्ञ पुरुष में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न किए बिना ही समा जाते हैं| ऐसा स्थित प्रज्ञ [मनुष्य] परम शान्ति को प्राप्त होता है, भोगों को चाहने वाला नहीं।